न कोई गॉड, न ईश्वर, न अल्लाह,
ये सब है इंसानी दिमाग कि लीला;
न कोई सिकंदर, न कोई पैगम्बर,
हालातों कि साज़िश से कायनात का ये रूप ढला.
न ही ज़न्नत, न ही दोज़ख,
न ही किसी क़यामत का सिला;
जिसकी जो तक़दीर में था,
इसी जनम में उसे मिला।
ना ही मिन्नत, ना ही धमकी,
समंदर का पानी क्यूंकर हिला;
ग़ौर करे और सोचे 'बेबाक़',
क्या है तमाशा ये किबला।
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