बिखरे शब्द Poem by Praveen Pandey

बिखरे शब्द



<इस कविता में मैंने वृद्धा आश्रम में रह रहे लोगो को विभिन्न शब्दों के रूप में स्थापित किया हैं
और कोशिश की हैं उस पल को आपसे मिलाने की, सुक्रिया।>

'बिखरे शब्द '
अनेकों बार दिखते थे
आते जाते लडखडाये दरवाजे से
कमरे में पड़े वो बिखरे शब्दों के मंजर
खंडहर सी हो चली थी
कुछ टूटे, कुछ फूटे पर गहरइयो में डूबे
समेटना मुश्किल था भावों के जोड़ने के संग
टिके थे कुछ शब्द दीवार से वोटे लगाये
मनो बया कर रहे हो कोई सहारे का कलम बन मुझको खड़ा कर जाये
कुछ और भी थे जो बिल बिलाए से
रुआसे हुए झुर्रियों लिए
शायद बता रहे हैं मलाल अब भी, न चुने जाने का किसी कविता के घरौदे में
कुछ शब्दों ने तो अपने अस्तित्व खो डाले हैं
और खो गये किसी अनजान जहाँ में
कुछ थे बैठे ब्रेन्चो पे पैर हिलाए गुनगुना रहे थे
लगा जैसे खुशियों से भरे शब्दों में उन्हें बार-२ पढ़ रहा हैं कोई
कुछ मग्न थे छत की दीवारों में आँखों में खोई हुई विसमिर्तियो संग
ऐसे अनेको थे
जिसमे से कुछ ने मेरी रूहों को छू लिया
और बंध गया मेरे कविता के बंधन में
पर जोखिम भरा था मेरे लिए इस पल को समेट पाना
और इस ब्लैक & वाइट का लिहाफ इस रंगीन दुनिया पे चड़ा पाना

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