पीड़ा और प्रेम Poem by Lalit Kaira

पीड़ा और प्रेम

शशि को निहारते निहारते
बीत जाएगी
एक और यादों जड़ी रात
दूब की मसहरी पर सिमटते हुए
संध्या के घर निशा का
जब होता है आगमन
मोम बनकर पिघलने लगता है मन
और यादें.....
यादें खट्टी-मीठी और
कड़वी छुरियों से
कुरेदने लगतीं है ह्रदय
दे जातीं है पीड़ा
आह!
पीड़ा के प्रति हमारा प्रेम
कितना मादक
कितना निश्छल कितना पवित्र...

Wednesday, July 16, 2014
Topic(s) of this poem: love
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Lalit Kaira

Lalit Kaira

Binta, India
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