शशि को निहारते निहारते
बीत जाएगी
एक और यादों जड़ी रात
दूब की मसहरी पर सिमटते हुए
संध्या के घर निशा का
जब होता है आगमन
मोम बनकर पिघलने लगता है मन
और यादें.....
यादें खट्टी-मीठी और
कड़वी छुरियों से
कुरेदने लगतीं है ह्रदय
दे जातीं है पीड़ा
आह!
पीड़ा के प्रति हमारा प्रेम
कितना मादक
कितना निश्छल कितना पवित्र...
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