na Jane Kyo न जाने क्यों? Poem by Lalit Kaira

na Jane Kyo न जाने क्यों?

Rating: 5.0

आज साँझ
जब क्षितिज पर
कपासी बादलों को
टुकड़े टुकड़े होकर
बिखरते हुऐ देखा
तो
न जाने किस भावना के
वशीभूत होकर
ऊद्धव को
गोपियों के पास भेजने वाले
उस कृष्ण की याद आ गई
जो अपने अंतिम दिनों में
निपट अकेले
भटक रहे थे।
और मैं अकस्मात्
आँसुओं में भीग गया।

Wednesday, July 16, 2014
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 04 November 2017

इस छोटे कलेवर की कविता में आपने पूरे एक युग के यथार्थ को समेटने का प्रयास किया है. बहुत खूब. धन्यवाद मित्र.

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