ये ख़ामोशी के अफ़साने Poem by Jaideep Joshi

ये ख़ामोशी के अफ़साने

ये ख़ामोशी के अफ़साने।

किसी ने गीत नहीं गाया पर
दिल में गूंजने लगे सैकड़ों तराने;

ये ख़ामोशी के अफ़साने।

किसी ने वक़्त को रोका नहीं पर
एक पल में बीत गए ज़माने।

ये ख़ामोशी के अफ़साने।

किसी ने बात नहीं छेड़ी पर
बन गए लाखों फ़साने।

ये ख़ामोशी के अफ़साने।

किसी न आबाद नहीं किये मयख़ाने पर
छलक गए बेसब्र पैमाने।

ये ख़ामोशी के अफ़साने।

किसी ने रौशन नहीं की शमा पर
कुर्बान हो गए अनगिनत परवाने।

ये ख़ामोशी के अफ़साने।

किसी ने एक झलक भी न दिखाई पर
तड़पने लगे पागल दीवाने।

ये ख़ामोशी के अफ़साने।

किसी ने पहल नहीं की पर
अपने बन गए सभी बेगाने।

ये ख़ामोशी के अफ़साने।

Wednesday, October 22, 2014
Topic(s) of this poem: philosophy
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