मशहूर नहीं आपकी शख्सियत की तरह,
की हर मेहफ़िल में मश्ग़ूल पायें जाएं,
जाम पे जाम पियें आपकी जीत का,
और अपनी ही हार पे खिलकिलायें जाएं।
आदतें हमारी उलझी नहीं इन शब्दों की तरह,
की स्याही से समेटो तो सुलझ जाएं,
बावला मन इश्क़ की बूँद-बूँद गिराता चले,
और कागज़ पे आपके नक्श झलक जाएं।
तबियत से होश संभालिये कुछ इस तरह,
की ख़ामोशी में लापरवाह शब्द बिखर जाएं,
तस्सवुर में अंगड़ाई लेके यादें फिसले,
और हकीकत में आप शख़्स नज़र आएं।
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