मैं हूँ, तुम हो, हम हैं। Poem by Anchal Dhanush Verma

मैं हूँ, तुम हो, हम हैं।

कभी हूँ हँसता कभी हँ रोता कभी बादलों में छिप जाता हूँ,
कभी फ़रियादों में बुन कर याचक की आवाजें बन जाता हूँ,
कभी रौशनी को पलकों पर सजाए आँखों से उजियारे कर देता हूँ,
कभी रस्तों पर चलकर आसमान में उड़ने की इच्छा कर लेता हूँ।

मैं हूँ, तुम हो, हम हैं।

तू है तो मुस्कुराती हैं कोयल, कुक्कू और कलियाँ,
तू है तो रंगा है इंद्राधनुष और रंगी हैं तितलियाँ,
तुझसे ही बहता है झरनो का पानी सारे,
तझसे ही चमकते हैं आसमान के सूरज, चंदा और तारे।

मैं हूँ, तुम हो, हम हैं।

हम हैं जो करते सूरज के घर भी सवेरा,
हम हैं जो मिटाते जुगनू की आँखों का अँधेरा,
हम हर उम्मीदों के फूलों का उपवन हैं,
हम हर साँसों की शोणित पवन हैं।

मैं हूँ, तुम हो, हम हैं।

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