तेरी यादो मे मेरी सुबह शाम हो ।
जैसे राधा के मन मे बसे श्याम हो ।
आ के ठहरो मेरे ख्वाबो मे तुम ।
थोडा मेरी पलको को भी आराम हो ।
मै एक सागर बहुत ही खामोश हूँ ।
दरिया तुम मेरी बाहो मे गुमनाम हो ।
मेरे घर मे अब तो चले आइऐ ।
जैसे सबरी के घर मे गए राम हों ।
थाम लो हाथ मेरा तुम इन राहों मे ।
इससे पहले कि दामन ये बदनाम हो ।
अशोक कुमार मौर्य
इलाहाबाद
भारत
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