Aaina (Mirror) Poem by Pushpa P Parjiea

Aaina (Mirror)

आयानाये जिंदगी में खुद का अक्स देखते रहे

ढूंढते रहे खुद को खुद में और यूं ही खोते रहे

कभी देखा इस आयने में खुद को फ़कीर सा हमने
कभी देखा खुद को अमीर सा हमने

बताया आयने ने हमें सच हमारी सच्ची तस्वीर क्या है
इंसा वही जो ठोकर खाकर संभाल ले खुद को

एक दिन बताया आईने ने हमें हम न समझे दुनिया का खुदा खुद को
कहा टटोलकर देख दिल अपना, और जब देखा हमने खुद को

पाया जो कुछ भी है सब तो दिया खुदा तेरा ही है
आईने ने दिखाया सच का आइना हमको

रहो जमीं पर न उडो आस्मां पर परिंदा बनकर
क्यूंकि आसमा है परिंदों की जागीर

आईने ने कहा इंसा तू तो हार जाता सिर्फ एक हार से
फिर भी अहंकार और घमंड न छोड़े है तू और,
मान लेता है खुद को खुदा जीवन में कभी न कभी, खुदा, खुद को

शुक्रगुज़ार हूँ आइना बनाने वाले का जिसने भरम तोडा है खुद को खुदा मानने वालों का

Saturday, August 6, 2016
Topic(s) of this poem: mirror
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