अपनी फितरत है (Apni Fitrat Hai) Poem by Nirvaan Babbar

अपनी फितरत है (Apni Fitrat Hai)

ऐतबार कर बैठे हम, आदत है, यारब अपनी फितरत है,
कर दिए वादे उसने कुछ ऐसे, जिन्हें ना निभाना उसकी आदत है,

बे-वजह मौत का डर बसा रखा है, अपनी फितरत मैं,
ऐसा करना हर इन्सां की यारो आदत है,

ज़िन्दगी, ज़िन्दगी रही, मिट जाना, ज़िन्दगी की आदत है,
कर बैठे गुनाह, ज़िन्दगी को जीने की, क्या करें कम्बख़त, ये भी अपनी आदत है,

राहों मैं खड़े रहे, ना जाने क्यों और किसका इंतज़ार किया,
तौबा - तौबा, ये इंतज़ार करना, ये हमारी फितरत मैं है, कहीं ज़िन्दगी शामिल है,

निर्वान बब्बर
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