कसूर मेरा नाम था, जो प्यार हो गया Poem by Arti Sood

कसूर मेरा नाम था, जो प्यार हो गया

वो रोज़ आसमान में सजा
टिमटिमाते तारों में घिरा
फिर भी मुझे निहारता था
कसूर मेरा नाम था, जो प्यार हो गया।
कई रूप बदलता; लुप्त भी हो जाता, कभी!
फिर इक दिन ऐसा चमक जाता
कि उसकी चांदनी में जगमगा जाता मेरा स्वरूप
कसूर मेरा नाम था, जो प्यार हो गया।
कहीं से भी निहारती, एक जैसे ही दिखाई देता था।
फूल, पत्ते, नदी, समुन्द्र पेड़, चिड़िया, तितलियां;
रौशनी के प्रेमी; कल्पना से प्रेरित, कवि
सब समेट लेना चाहते थे उसकी चांदनी
पर वो मनचला मुझ पर ही था मेहरबां!
कसूर मेरा नाम था, जो प्यार हो गया।
मुझ पर सितम ये हुआ;
कि न कभी कुछ कहा न कुछ सुना
वो रसिक तो बस अपनी चाल पर चला जा रहा था;
दूर आसमान से ही, स्नेह रस भरे जा रहा था!
कसूर मेरा नाम था, जो प्यार हो गया।

कसूर मेरा नाम था,  जो  प्यार  हो  गया
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