इस कलियुग में एक नया मज़हब धरती पर है उभरा,
सभी के दिलों में खौफ़ है इसका गहरा |
अमेरिका, भारत, अफगानिस्तान या पाकिस्तान
सभी जगह फैले हैं इनके कदमों के खूनी निशान |
नर-नारी, बच्चे-बूढ़े या जवान,
किसी को भी नहीं बख्शते ये हैवान |
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बेबस या लाचार,
सबके सब हैं इस खूनी खेल के शिकार |
कहीं धर्म और मज़हब की दुहाई,
तो कहीं बनते हैं ये इंकलाब के सौदाई |
नक्सली, माओवादी, तालीबानी जैसे कई नाम हैं इनके,
हैवानियत है पेशा, नफरत दिलों में इनके |
कहीं गोलियों की गूंज, कहीं बमों के धमाके,
बिखरी हुई लाशें और बिलखते हुए चेहरे |
मासूमों की कराह है इनका संगीत,
इनका न कोई अपना, इनका न कोई मीत |
गुमराह युवा चढ़ रहा है इनके हत्थे,
हर देश, हर कौम में जुट रहे हैं इनके जत्थे |
तबाही और बर्बादी के इस खेल से क्या हासिल होना है,
जिसने चुनी ये राह उसे तो जीवन भर रोना है |
नफरत की आंधियां बिखेरने वालों ज़रा गौर से देखो,
इस उजड़ी हुई बस्ती में कहीं तुम्हारा तो घर नहीं है?
गुमराह लोगों अपने जीवन की राह मोड़ो,
अपनाओ मुहब्बत को, नफरत की जंग छोड़ो |
इंसानियत के दुश्मनों की बात ना सुनो,
इनकी ‘ब्रेन वाशिंग' के शिकार मत बनो |
हिंसा सदा दिलों में हिंसा ही है जगाती,
इतनी सी बात क्यों तुम्हे समझ नहीं है आती |
किसी की मदद करने का जो अनोखा है सुकून,
दे नहीं सकता कभी ये बर्बादी का जुनून |
खून सने हाथ लिए जब खुदा के पास जाओगे,
क्या सफाई दोगे उसे और क्या मुंह दिखाओगे?
बच्चों की मुस्कान, बड़े-बूढ़ों का आशीर्वाद कमाओ,
गरीबों और लाचारों का तुम सहारा बन जाओ |
लड़ना ही है गर तुम्हे तो लड़ो अन्याय और अत्याचार के खिलाफ़,
भूख, गरीबी, गंदगी और भ्रष्टाचार के खिलाफ़ |
मिटा दो इस धरती से दहशतगर्दी की काली रात,
इंसानियत की सुनहरी किरणों का लाओ नया प्रभात |
मुहब्बत से बढ़कर मज़हब नहीं है दूजा,
सच्ची यही इबादत, सच्ची यही है पूजा |
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem