शहर
जिन्दगी शहर की ओर, गाँव से दूर
भागते- दौड़ते आगे बढ जाने की होड
जैसे कोई यंत्र, थकने की गुंजाइश नहीं
न खाने की फुरसत, न सोने के लिए वक्त
भाग और भाग, जब तक पैसे और सफलता से दब न जाए
या पेट की भूख मर न जाए
क्या यही है जिन्दगी?
गाँव छोड कर क्यों आया था शहर
कुछ तो है इस शहर में
जो खींच लाता है सबको
चाहे कुछ दिन के लिए ही सही
आमोद- प्रमोद, सुख-सुविधाएँ सब हैं यहाँ भरपूर
बस जीवन है कठिन
सब लोग अंधाधुंध दौड रहे हैं
उन्हीं में हम भी हैं शामिल
आखिर, पापी पेट का सवाल जो है!
(c)Dr. Sada Bihari Sahu / September 06,2019
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ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों तथा नगरों से महानगरों की ओर लोगों का निरंतर पलायन एक वास्तविकता है. इसके बहुत से आयाम हैं जिनका अपने सुंदर चित्रण किया है. यह निस्संदेह एक श्रेष्ठ रचना है.