दुल्हन चली
ख़ुशी की तस्वीर गढ़े जा रही है।
दुल्हन बन डोली चढ़े जा रही है।
नयन में बुने हैं नये ख्वाब उसके,
गमों का पिटारा दिये जा रही है ।
चली है बसाने, सजन का महल अब,
घर पिता का खाली किये जा रही है।
जगमगा उठेगा, पिया का सजा घर,
तिमिर मातु उर में भरे जा रही है।
करती थी रुनझुन, चहकती हमेशा,
सुखोचैन माँ का लिये जा रही है।
उड़ चली बुलबुल, बगिया से जनक की,
बहारें चमन की लिये जा रही है।
चहक से भरेगा ससुर अंगना अब,
मकां बाबुल, सूना किये जा रही है।
उड़े थी कभी वह कली सी हवा में,
जहां का वजन सिर धरे जा रही है।
सखी औ सहेली भरीं अश्क नयनन,
जुदाई गरल वह पिये जा रही है।
- एस० डी० तिवारी
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