Faith Poem by vijay gupta

Faith

आस्था
निर्मल हिमखंडों के बीच से अवतरित गंगा,
सदियों से हमारी आस्थाओं को संभाले है।
आज भी शाम के धुंधलके में,
असंख्य दीपों की जगमगाहट,
गंगा के तट पर विद्यमान,
हजारों श्रद्धालुओं की आस्था,
गंगा के इस पावन तट को,
और पावन बना रही है।
दीप दान की परम्परा,
और उससे जुड़ी आस्था अति प्राचीन है,
अपने पूजनीय मृत परिजनों की आत्माओं,
के पथ को आलौकित करना चाहते हैं।
यह हमारी आस्था ही तो है,
राह की दुश्वारियों की कोई परवाह नहीं,
हजारों-हजारों मील लांघ कर,
हम शरद पूर्णिमा के दिन गंगा में
दीप दान करते हैं।
ऐसा कर अपनो को धन्य,
एवं ऋण मुक्त समझते हैं।
यह हमारा भारत ही है,
जहां हम भारतवासी,
अपने पूर्वजों की निष्ठापूर्वक सेवा करना भी,
अपना धर्म एवं कर्तव्य समझते हैं।

Monday, November 13, 2017
Topic(s) of this poem: faith
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meerut, india
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