Kho Jaane Ko Ji Chahtaa Hai Poem by Pushpa P Parjiea

Kho Jaane Ko Ji Chahtaa Hai

कुछ लिखूं लिखते जाने को जी चाहता है


कुछ कहूँ कहते जाने को जी चाहता है


बाँध न पाये अब मुझको सीमा कोई


आसमां लांघ जाने को जी चाहता है


उड़ती जाऊं हवाओं में दिन रात मैं


बिन रुके उड़ते जाने को जी चाहता है


ऐसा करने का साहस नहीं था मगर


झील में पैठ जाने को जी चाहता है


संग ले कर चलूँ अपने खुशियाँ हज़ार


इस कदर मुस्कुराने को जी चाहता है


फूल खिल जायें जज़्बात के बेपनाह


सपने अपने सजाने को जी चाहता है


खयालों की गलियों में भटकन लिये


खुद को ही भूल जाने को जी चाहता है


दिले नादां खुशी तुझको इतनी है क्यों


ये समझने न समझाने को जी चाहता है.


खो जाऊं कहीं बस खो जानेको


जीचाहताहै

Saturday, October 20, 2018
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