ना तो जनता को भ्रष्टाचार मार रही है,
ना ही जनता को महँगाई मार रही है,
कैसे बदले इस संसार को जो इतनी बुराइयों से भरी है,
लाख उपायों के बाद नहीं बदलती ये लाचारी मार रही है।।
किसी न किसी बात में उलझाकर आपस में लड़ाते हैं,
फिर वहीं लोग हमारे घाव पर मरहम लगाने आते है,
आदमी आदमी के बीच खाई कौन लोग बढ़ाते हैं
हिसा की प्रवृति लोगों में कौन जगाते हैं
लोगों को एेसे लोगों से हारने की लाचारी मार रही है।।
आतंकवाद के बीज को बोता किसने है,
अंधविश्वास के अंधकार को लाया किसने है,
कुछ लोग क्यों इतने फल फ़ुल रहेहैं
कुछ लोग एक एक रोटी के लिए झुल रहे है
लोगों को इस बात की गहराई मार रही है।।
लोगों को अज्ञान के अंधेरे में भटकाता कौन है,
लोगों को उलटे रास्ते पर चलने को सिखाता कौन है
विचारों के ज़ंजीर से आदमी ख़ुद क्यों बँधा है
आँखाें केहोने बावजूद भी आदमी अधा क्यों है
लोगों को इस बात की सच्चाई मार रही है
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