Mazjil Poem by sahil mishra

Mazjil

बेठा एक रोज में
उसकी याद में फिर
☝☝☝☝☝☝
पूँछ लिया हमने
उनसे एक सवाल फिर
☝☝☝☝☝☝☝
ये जीवन एक सफ़र है
तो क्या हूँ में एक मुसाफिर
🚗🚗🚗🚗🚗🚗🚗🚗
अगर है असा तो बता
मेरी मंजिल है कहाँ फिर
🚏🚏🚏🚏🚏🚏🚏
पहले वो थोडा मुस्कुराये
फिर बोले ऐ मुसाफिर
😊😊😊😊😊😊😊
मंजिल तो तेरी दूर है
अभी जाना है तुजे जहां फिर
🚀🚀🚀🚀🚀🚀🚀🚀🚀
समझ उससे पाया ना में
हुआ थोडा हैरान फिर
😕😕😕😕😕😕😕
कैसे पहुँचूँगा में
कोंन पहुचायेगा मुझे वहा फिर
✊✊✊✊✊✊✊
वो और थोडा मुस्कुराया
फिर बोला ऐ मुसाफिर
☝☝☝☝☝☝☝
भूल के तू अपनी मंजिल
और तू कोंन है यहा फिर
☝☝☝☝☝☝☝☝
बस युही बेठा रह तू
मेरी याद में यहाँ फिर
☝☝☝☝☝☝☝☝☝
बेठा के तुजे अपनी पलकों पे
तेरी मंजिल तक पंहुचा दूंगा मुसाफिर

COMMENTS OF THE POEM
Gaurav Purohit 23 November 2015

Hey this is a good poem, read my poems also by searching Gaurav Purohit in the search option and comment and vote also.

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