ज़िन्दगी तू क्या है Poem by sahil mishra

ज़िन्दगी तू क्या है

ऐ ज़िन्दगी तू क्या है
तू समझ आती नहीं मुजको
तू बताना क्या चाहती है मुजको
तू जाताना क्या चाहती ह मुजको

जो में करता हु वो सब गलत है तो
जो सही है वो बताती क्यों नहीं मुजको

ये जो पल पल सीखाने का खेल है तेरा
तो हर पल गिरती है क्यों मुजको
अगर आगे बढ़ने नहीं देना है मुझे तो
होसला देके उठती है क्यों मुजको

अगर तू सिर्फ एक हार जीत का खेल है
ये भी खुल के बताती क्यों नही मुजको

जितना तुझे समझने की कोसीस करता हु में
उतना ही उलझा देती है मुजको
नाराज हु में खुद से में इस कदर
तू समझ आती क्यों नहीं मुजको

अब तो जो भी चाहे तू मुझसे
बस एक ही बात समझ आती है मुजको
तू बस एक नाटक का मंच है
अब इसमें हीरो बनना है मुजको

करले तू अब कितनी भी नादानियां
बस सिर्फ हँसी अब आती है मुजको
खेल ले तू अब कोई भी खेल मेरे साथ
हरा तू अब पायेगी ना मुजको

ऐ ज़िन्दगी तू क्या है
ये अब समझ आ गया है मुजको।।।।।

COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 16 November 2015

Koi samjha nahi koi jana nahi..Zindagi kya hi ek paheli hai...Badhiya.

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