Mother Poem by Mayank

Mother

Rating: 5.0

अन्नपूर्णा के रूप में रसोई घर की शान है माँ,
ममता का आरंभ व अन्त है माँ,
घर रुपी मंदिर में ईश्वर का आशीर्वाद है माँ,
बिन कांटों का खिलता गुलाब है माँ,
मृत्यु रुपी संकट का भी अंत है माँ |


नौ महीने की तपस्या है माँ,
ईश्वर की उपासना का हर्ष रूपी प्रसाद है माँ,
सुधा कलश का विराट स्वरुप है माँ,
हाथों की अनंत लकीरे है माँ,
भूखे की रोटी तो प्यासे का नीर है माँ |


संघर्षों की कहानी में छुपी खुशियों की चाबी है माँ,
आशाओं की किरण में छुपी संघर्ष की जीत है माँ,
अंधेरी दुनिया में पूर्णिमा का चाँद है माँ,
परिवार रुपी महासागर का संगम है माँ,
चरणामृत की पवित्रता है माँ |


जन्म संग संस्कारों की जड़ है माँ,
कुल वंश का आरंभ व अन्त हैं माँ,
सहनशीलताओं के सागर में डूबा धैर्य पुष्प हैं माँ,
मोहन की गीता में छुपा जीवन का सार है माँ,
अंततः दर्द को समेटकर खुशियों की बौछार करती हैं माँ |

Friday, May 18, 2018
Topic(s) of this poem: mother
COMMENTS OF THE POEM
Makayla 23 May 2018

Bahut sundar kavita. Bhavon ka marmik varnan. 👍👍

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