My Village Poem by vijay gupta

My Village

मेरा गाँव

टेड़ी-मेड़ी पगडंडियों को,
छोड़ कर आया था।
जीवन में कुछ नयापन,
की आशा लिये आया था।
मिट्टी की सोंधी महक,
छोड़ कर यहाँ आया था।
कैक्टस, गेंदा, गुलाबो की महक,
छोड़ कर यहाँ आया था।
क्या पता था मुझे,
अकेलापन मिलेगा यहाँ।
स्वार्थों से भरा समाज,
कंक्रीट का बना विशाल जंगल,
डाबर की निर्मोही सड़के,
यहाँ देखने को मिलेंगी।
दुर्गंध फैलाते नाले,
बीमारियॉं बांटते कूड़ो के ढेर,
विषात वातावरण देखकर,
यहाँ आना निरर्थक लग रहा है।
सोचता हूँ आज मैं,
मेरा वो गाँव आज भी
इंसानियत की सुगंध बखेरने वाला,
रिश्तो की पवित्रता को बनाए रखने वाला,
श्रेष्ठ है, आदरणीय है, अतुलनीय है।

Sunday, June 25, 2017
Topic(s) of this poem: village
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meerut, india
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