जाऊं मैं कैसे, पास पिया के
बन नहीं पाती मोसे, छवि ही मेरी।
कर न पाऊं सखी, खुद पे भरोसा
दर्पण निहारूं मैं, कई कई बेरी।
नहाने गयी मैं, नदिया किनारे
वस्त्र न सूखे अभी, हो गयी देरी।
गहने जो पहने, पिऊ न भावे
सोना न चांदी कहीं, नग ना जड़े री।
चाहूँ मैं रंगना, रंग में पिया के
लाख बनाऊं मगर, रंग न बने री।
ऐसो श्रृंगार एसडी, सूझे न कैसे करूँ
बाँहों में मोको, पिया ले ले री।
(c) एस० डी० तिवारी
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