तेल और गैस बचाव पखवाड़े की शुरवात 1991 मे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के मार्गदर्शन मे हुई थी| पहले ये कार्यक्रम एक हफ्ते का होता था, जिसकी अवधि 1997 मे दो हफ्ते कर दी गयी| इस वर्ष 2017 से इसकी अवधी बढ़ा कर 1 महीने कर दी गयी है।
आज के वैश्विक परिवेश मे किसी भी देश कि सामाजिक और आर्थिक तरक्की के लिए ऊर्जा का उत्पादन और उसका सही तरीके से इस्तेमाल बहुत ही आवश्यक है| हमारा देश अपनी ऊर्जा के लिए काफी हद तक जीवाश्म ईंधन (fossil fuel) पर निर्भर रेहता है, जिसमे पैट्रोलियम उत्पादों का एक विशेष योगदान है| भारत मे पेट्रोलियम की खपत बहुत तेजी से बढ़ रही है| पेट्रोलियम की खपत 1950-51 मे 3.5 MMT थी जो 2013-14 मे बढ़कर 158.2 हो गयी और 2021-22 मे इसकी खपत 245 MMT तक पहुँचने का अनुमान है|
भारत कि 75% से ज्यादा पैट्रोलियम कि ज़रूरत दूसरे देशों से आयात करके होती है| इससे हमारे देश के budget का एक बड़ा हिस्सा देश के बहार चला जाता है| इसके अतिरिक्त पैट्रोलियम उत्पादों को उपयोग करने से पर्यावरण को भी काफी नुकसान होता है|
अब ये समय आ गया है कि हम पैट्रोलियम उत्पादों को कंजूसी से खर्च करें| अगर हम अपनी आने वाली पीढ़ी को पैट्रोलियम के दर्शन करना चाहते हैं, तो हुमे इसको बचाने कि मुहिम आज से शुरू करनी करनी होगी| ईंधन बचना हम सब कि सामूहिक ज़िम्मेदारी है|
इसके लिए हमे ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत कि तरफ और तेज रफ्तार से बढ़ना होगा| इंडियन ऑयल ने इस तरफ काफी काम किया है| हमने जवारहलाल नेहरू सोलर मिशन के अंतर्गत जनवरी 2012 मे राजस्थान मे 5MW का सोलर प्रोजेक्ट कमिशन किया| इसके अतिरिक्त वायु ऊर्जा मे भी हम गुजरात और आंध्रा प्रदेश मे है| Biodiesel के क्षेत्र मे IndianOil और Chhattisgarh Renewable Energy Development Authority (CREDA) ने IndianOil-CREDA Biofuels Ltd नाम से JV किया है| इस प्रोजेक्ट ने 3.5 लाख श्रम दिन का ग्रामीण रोजगार भी दिया है|
हम अपनी पैट्रोलियम कि निर्भरता को खत्म तो नहीं कर सकते, पर इसके उपयोग के तरीके मे बदलाव ज़रूर कर सकते हैं; और अपने देश कि आर्थिक तरक्की मे योगदान दे सकते हैं| इसके अतिरिक्त ऐसा करने से हम अपने पर्यावरण को भी बचाएंगे|
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