Rakesh Ke Dohe Poem by Rakesh Sinha

Rakesh Ke Dohe

१. मेहनत अक्ल से कीजिए, सफलता का यही भेद,
उसमें पानी क्यों भरें, जिस बरतन में छेद ।
२. ईश्वर तेरी कलयुगी दुनिया का कैसा अजब है खेल,
चोर-बेईमान ऐश कर रहे, साधु रहे दुख झेल ।
३. कथनी और करनी का यारों बहुत हो गया फर्क,
सीधा-सच्चा जो रहे उसका बेड़ा गर्क ।
४. मंदिर-मंदिर फिरता है तू मिलता नहीं है ईश्वर,
मन निर्मल कर ले अपना तो दर्शन दें परमेश्वर ।
५. भ्रष्टाचार के अजगर ने हम सबको लिया लपेट,
मुशकिल से कोई मिले जो चढ़ा न इसकी भेंट |
६. सत्ता, पद और दौलत को ही अब है पूजा जाता,
सच्चाई, सादगी और नैतिक मूल्यों का बंद हो गया खाता |
७. निर्धन मरे है भूख से, खा-खा कर धनवान,
अजब प्रभु तेरी लीला है, कोई सका नहीं जान |
८. इंसानियत की राह पर चल, यही है ईश्वर भक्ति,
सत्य - अहिंसा - प्रेम को अपना, इनमें है बड़ी शक्ति |

Sunday, September 28, 2014
Topic(s) of this poem: humanity
COMMENTS OF THE POEM
Ajay Kumar Adarsh 19 August 2016

wakayi aapke dohe kabil-e-tarif hai i luke all but specially- - - - ईश्वर तेरी कलयुगी दुनिया का कैसा अजब है खेल, चोर-बेईमान ऐश कर रहे, साधु रहे दुख झेल ।

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