Sahil Se Kah Do (साहिल से कह दो वो लाँघे न नदियाँ) Poem by Vivek Tiwari

Sahil Se Kah Do (साहिल से कह दो वो लाँघे न नदियाँ)

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साहिल से कह दो वो लाँघे न नदियाँ
गुलशन से कह दो वो नोचे न कलियाँ॥
कह दो सिंतारों से चाँदनी न छेडे
बहारों से कह दो चमन न उजाड़े॥
गज़ल की हया कोई सरगम न तोड़े
बसन्ती पवन गुलशन न बिगाड़े॥
झरनों से कह दो घाटी न उफानें
हिमालय न तोड़े बरफ की शिखाएँ॥
हम आएं हैं फिर ये सकल सोंच लेके
कि छिटकती हुई रोशनी फिर सजोएँ॥

विवेक तिवारी

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Gaura (R.S.) Pratapgarh
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