Sahukar Ki Maut Poem by Shashi sharma

Sahukar Ki Maut

Rating: 3.3

एक दिन शहर का एक साहूकार
जिसे अपने धन और बच्चों से था बहुत प्यार
एक दिन परलोक सिधार गया
और यमराज के सामने पधार गया
यमराज ने चित्रगुप्त को बुलवाया
उसका बही-खाता खुलवाया
और बोले-इसने गरीबों का बहुत खून चूसा है
इसके शरीर पर जोंक छोड़ दो या
खाल उधेड़ दो।
साहूकार निर्भीकता से बोला
सर मैं तो कई सालों से खून चुसवा रहा हूँ
और खाल भी खिंचवा रहा हँू
क्योंकि मैं कई सालों से अपने बच्चों को
‘रेपूटेटड’ पब्लिक स्कूल में पढ़ा रहा हूँ

COMMENTS OF THE POEM
Jazib Kamalvi 03 October 2017

A sublime start with a nice poem, Shashi. You may like to read my poem, Love And Lust. Thank you.

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