जब मैं भटकता था 'सुकून की तलाश' में..
एक अजनबी चेहरा था तारों के लिबास में..
बेकरारी एहसास में, तड़प थी हर सांस में.
जब मैं भटकता था 'सुकून की तलाश' में..
1-मचलती उमंग, उम्मीदों के कुछ नये रंग थे पास में..
लगने लगा था यूँ के हूँ कुछ खास मैं.
ख्वाबों की तरंग बल खाती थी पास में.
जिंदगी थी एक नशा और था बदहवास मैं..
हैं ये उस हसीन सफ़र की दास्तां..
जब मैं भटकता था 'सुकून की तलाश' में..
2-थी जब तक ख्वाबों की सौगातसाथ में..
लगती थी जिंदगी जैसे झड़ती हो चांदी रात में..
गुनगुनाती थी सारी सरगमें जैसे आस पास में..
जिंदगी थी एक नशा और था बदहवास मैं.हैं
ये उस हसीन सफ़र की दास्तां..
जब मैं भटकता था 'सुकून की तलाश ' में..
3-सब कुछ तो समझता था, इतना सा और समझ लेता काश मैं.....
के सुकून तो पा लेते हैं शोले भी आग में..
नहीं तो भटकता रहता है भंवरा भी बाग़ में..
जब मैं भटकता था 'सुकून की तलाश ' में..
एक अजनबी चेहरा था तारों के लिबास में...... [H.D]
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