Swings On The Mango Tree Poem by vijay gupta

Swings On The Mango Tree

आमिया पर झूले

पढ़ते थे अमिया पर झूले
अब नदारत वो हो गये।
न जाने कहां चला गया वह मतवाला,
छेड़ता था जो तान बांसुरी की।
नाचती थी कठपुतलियां,
न जाने वो कहां चली गई।
नाचता था भालू,
बच्चे ताली बजाते थे।
बंदर-बंदरिया का तमाशा,
आम बात थी।
आज नेट है, लैपटॉप है,
बच्चों की आंखों पर चश्मा है।
मैदान सुनसान है विरान है,
माँलस व बिग बाजार शहर में आम है।
समय बदलता है
ये भी आम बात है।
कला संस्कृति की तस्वीर बदलती है,
ये भी आम बात है।
आम आदमी उसमें खो गया है,
ये बात सच है।
उसका रुदन खो सा गया है,
मशीनों के शोर में,
यह असामान्य बात है,
और हमें अस्वीकार है।

Tuesday, December 26, 2017
Topic(s) of this poem: loneliness
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meerut, india
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