Tera Shukriya Khuda (Hindi Ghazal) तेरा शुक्रिया खुदा Poem by S.D. TIWARI

Tera Shukriya Khuda (Hindi Ghazal) तेरा शुक्रिया खुदा

तेरा शुक्रिया खुदा

घर से भेज, जमीन पर रहने की जगह दी।
चलने के लिए पांव, सोने के लिए सतह दी।
खाना, पानी, हवा, दवा, सिर पे छाँव दिया
प्यार बेसुमार दिया, कभी गर विरह दी।
राह में पड़े कांटे, कभी, पांव में चुभे गए
निकाल लेने को, काटों से ही सुलह दी।
कितने दुश्मन हुए, हो जाता दुस्वार जीना
बा अक्ल हम उनसे लड़े, और तूने फतह दी।
रिश्ते नाते दिए, दोस्त और यार दिये
उनके संग में, मुस्कराने की वजह दी।
सभी उन लोगों का हम शुक्रगुजार हुये
जिन्होंने वक्त पड़े, दिल में अपने जगह दी।
दुर्दिन घेर लेते तो क्या कर लेते हम
उनको दिया मात, और, तूने हमें सह दी।
कैसे कर पायें खुदा, तेरा शुक्रिया अदा
हर बीते साल तूने, तीन सौ पैसठ सुबह दी।

- एस० डी० तिवारी

Friday, December 30, 2016
Topic(s) of this poem: hindi,spiritual
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