सत्य का उन्मेष (The Universe Of Truth) Poem by Dr. Sada Bihari Sahu

सत्य का उन्मेष (The Universe Of Truth)

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हो गयी दुर्लभ बहुत ईमानदारी दोस्त
है मगर आशा मेरी बिल्कुल न हारी दोस्त

अब नहीं कोई पढ़ाता सत्य की गीता
अब नहीं है राम कोई अब नहीं सीता
पूछता है कौन अब ईमानदारी को
पूजते उसको समर जिसने यहाँ जीता

क्या वे शिक्षक क्या प्रशासक क्या वे नेतागण
कर रहे प्रति पलसभी बस झूठा संभाषण
आँख है लेकिन कहाँ है दृष्टि जो देखे
और कहाँ जिह्वा करे जो सत्य का वर्णन

दोस्त आओ हम हटाएँ इस तिमिर को घोर
ले चले मानव हृदय को रोशनी की और
पाप का कल्मष कटेगा एक दिन निश्चय
थाम लो मीत मेरे सत्य की यह डोर


साक्ष्य है इतिहासमें रावण रहें या कंस
डूबता है एक दिन तो पाप का अवतंस
नीर से करता विलग जो क्षीर को ए मीत
तुम बनो,मगर बनसको ऎसे विवेकी हंस

हम करेंगे दोस्त मिल ऎसे कोई सदुपाय
इस धरती पर जहाँ हो मनुज समुदाय
सब सदाचारी समुन्नत और हों सत काम
हर दिशा में सत्य का उन्मेष सा हो जाये

Wednesday, January 17, 2018
Topic(s) of this poem: truth
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
The poem is in Hindi language and talk about Truth.
COMMENTS OF THE POEM
Dr Dillip K Swain 29 January 2018

दोस्त आओ हम हटाएँ इस तिमिर को घोर ले चले मानव हृदय को रोशनी की और पाप का कल्मष कटेगा एक दिन निश्चय थाम लो मीत मेरे सत्य की यह डोर....humble expression, a beautiful piece of work! Thanks for sharing...10

1 0 Reply
Sada Bihari Sahu 31 January 2018

धन्यवाद दिलु. You like the poem. Thanks a lot.

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