जब अन्थकार हो घोर घना
तुम टकराओ पत्थर बनकर।
अन्याय के संग्रह आलय मेँ
तुम दहक उठो ज्वाला बनकर॥१॥
तुम हो प्रचण्ड, तुम हो प्रताप,
तुम शौर्य पराक्रमशाली हो।
जो चट्ठानोँ को नतमस्तक कर दे
वह वीर महाबलशाली हो॥२॥
जब हो शैतानी शक्ति प्रबल
चहुँओर टूटता भय का कहर।
कर दो दुष्टोँ मेँ प्रलय ताण्डव
बनकर विध्वंशक रुद्र निडर॥३॥
वह है तुझमेँ, तू है उसका
तो अस्त्र-शस्त्र से क्या डरना।
तुझको तो है अमरत्व सदा
तो मृत्यु शब्द से क्या डरना॥४॥
है शान तेरे जीने के लिए
लज्जा मेँ झुककर न जीना।
तू गौरव का सिर पर ताज लगा
शर्मशार हो क्या जीना॥५॥
एक क्षण भी घुटकर जीने का
सौ हार से बद्तर होता है।
कुछ पल जो सब के दिल को छु ले
वह ही तो जीवन होता है॥६॥
विवेक तिवारी
१३/१२/२०१२
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem