वक़्त है कि काटता ही नही
मेरे अब चाहने से
जाने क्यूँ लगता है डर मुझको अब ज़माने से
तनहा हूँ इतना कि अब साया भी साथ नही रहता
इसने भी छोड़ दिया अब मुझको एक बहाने से
वक़्त है कि काटता ही नही
मेरे अब चाहने से
अश्क़ और इश्क़ में जब कोई फर्क नही रहता
चाह कर भी नही छुपता दर्द फिर ज़माने से
आदत नही मेरी वक़्त के साथ बदल जाऊ मैं
कर लेना याद अगर मिल जाये फुरसत मुझे भुलाने से
वक़्त है कि काटता ही नही
मेरे अब चाहने से
काश कोई अहसास ना होता उनके युं आजमाने से
जाने उन्हें भी मजा आने लगा हमे बार बार सताने से
तुझे याद करके जीते और पिते है आज कल
अब तो लोग भी पूछते है कैसी आवाज आती है मैयख़ाने से
वक़्त है कि काटता ही नही
मेरे अब चाहने से
यादें है कि बढ़ती ही रहती है हर रोज तुम्हे भुलाने से
और अहसास भी बदलते नही तेरे दूर जाने से
आती नही मौत भी अब तो पास मेरे बुलाने से
और देख लेता हूँ हर दिन नया किसी न किसी बहाने से
वक़्त है कि काटता ही नही
मेरे अब चाहने से । । ।
aww...this is a very poignant poetry bleeding from the heart of a true lover! ! loved it i would love to read more of your poems
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I would like to translate this poem
Seems A refined poetic imagination, kartik. You may like to read my poem, Love And Iust. Thank you.