Satish Satyarthi

Satish Satyarthi Poems

जिस जमीं पे हरियाली को लाने,
बढ़ चला गगन बादल को पाने ।
सह नहीं सके तनाव दूरी के
ऊँच गगन की मजबूरी के
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The Best Poem Of Satish Satyarthi

Jameen Ke Dhage

जिस जमीं पे हरियाली को लाने,
बढ़ चला गगन बादल को पाने ।
सह नहीं सके तनाव दूरी के
ऊँच गगन की मजबूरी के
गए टूटते उसी ज़मीं से
रिश्ते के धागे किसी बहाने ।।
बढ़ चला गगन ़़ ़़़़ ़ ़

बिन धागों के आसमाँ से उतर नहीं जब पाता हूँ,
ऊँच गगन के गोद से उन धागों को ललचाता हूँ,
बादलों की समृद्धि पे झूठ मूठ इठलाता हूँ,
धागों को उनके उलझन की बीती बात बताता हूँ,
वो अति दूर हैं सुनने को,
ये बात समझ ना पाता हूँ ।।
बिन धागों के आसमाँ से ़़ ़ ़ ़

क्या मिला मुझे इन बादल से, जो हवा में गोते खाते हैं ।
बिन धागों के, आज़ादी में, यहाँ वहाँ मँडराते हैं ।
न फ़िक्र इन्हें है हरियाली की, ना धागों के उलझन की।
बस इन्हें ख़बर है उन बूँदों की, जो टकराने से आते हैं ।
बूँदों की बारिश कर के ख़ुद मिट्टी में मिल जाते हैं।
ज़मीं हरा भरा कर के जब, बादल ये छँट जाते हैं,
ज़मीन के टूटे धागे तब अच्छा मौसम बतलाते हैं।।
क्या मिला मुझे इन बादल से, ़़ ़ ़ ़

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