-: कौन यहाँ? : : -
जख्मों को हमारे, मरहम लगता, कौन यहाँ?
जीने की लाठी जो टूट चुकी, जोड़ता, कौन यहाँ?
...
-: खुद के अंतर मन में: -
दुनिया में जीने का,
सलीक़ा ढूंढ़ रहा हूँ ।
...
कौन यहाँ?
-: कौन यहाँ? : : -
जख्मों को हमारे, मरहम लगता, कौन यहाँ?
जीने की लाठी जो टूट चुकी, जोड़ता, कौन यहाँ?
गुल खिला, गुलिस्ताँ इक बनाया था हमने,
आज उन सूखे पेड़ों को, सिंचता, कौन यहाँ?
आरमान सारे गवा दिये अपने, जिसको बनाने में ।
वो महफिलें, रंगरलियाँ मनाता, अपने आरामखाने में ॥
तरस गए दो शब्द प्यार के सुनने को, उनसे
आँखों के सूखे मोती को, देखता, कौन यहाँ?
हैं जिनके नाम से ऊंची ऊंची इमारतें ।
दिल मे ही कैद रही, थी जो हसरतें ॥
नौकर-चाकर, महाराज, थे जिस घर में,
आज भूखे पेट को निवाला, खिलाता, कौन यहाँ?
तू जीये हजारों साल, तरक्की दर तरक्की हो ।
दुआ है हमारी, हो बुलंदी, खुशियाँ ही खुशियाँ हो ॥
आज है जिनकी सौकड़ों मिलें, कारखानें, वस्त्रों की
मगर, हमारे तंज़, फटें कपड़ों को, सिता, कौन यहाँ?
-: सोनू सहगम: -