गुरु से बढ़कर इस दुनिया में, न कोई दूजा होवे रे
जो गुरु को कुछ भी न समझे, वो रावण बन रोवे रे
प्रेम-क्रोध तो दो ही रूप है, दया-दृष्टि की महिमा अनूप है
...
अरे मैं तो था उन कश्तीयों में, झूठ से भरी बस्तियों में
साथ मेरे क्या धरा था, मैं तो पूरा सच खड़ा था ॥(2) ॥
दुनिया साँची मैं ही झूठा, मुझसे ही मेरा मन था रूठा
...
अरे मैं तो था उन कश्तीयों में, झूठ से भरी बस्तियों में
साथ मेरे क्या धरा था, मैं तो पूरा सच खड़ा था ॥(2) ॥
दुनिया साँची मैं ही झूठा, मुझसे ही मेरा मन था रूठा
...
वो खुशबू न जाने कहा खो गयी
जो तेरे होने से महसूस हुआ करती थी...
जहाँ शामें लिया करवटे..
...
गुरु-समीक्षा
गुरु से बढ़कर इस दुनिया में, न कोई दूजा होवे रे
जो गुरु को कुछ भी न समझे, वो रावण बन रोवे रे
प्रेम-क्रोध तो दो ही रूप है, दया-दृष्टि की महिमा अनूप है
मात-पिता है प्रेम के सागर, गुरु तो शिक्षा का स्तूप है
सत व कुमार्ग को दर्शाते, स्वयं की महिमा कभी न बतलाते
मार्ग भटकने पर समझाते, वही तो असल गुरु कहलाते
हम शिष्य है, गुरु तेरे हवाले, हाथ पकड़ कर चल लेंगे
तू रोकेगा, तू टोकेगा, तू समझाये समझ लेंगे
जो भूल-सूत को ध्यान न रखकर, जग हित भार को ढोवें रे
गुरु से बढ़कर इस दुनिया में, न दूजा कोई होवे रे
it's my first creative.. i hope you will like it.... :)