जीवन की सच्चाई : (The Truth Of Life) Poem by Mukul Kumawat

जीवन की सच्चाई : (The Truth Of Life)

Rating: 5.0

अरे मैं तो था उन कश्तीयों में, झूठ से भरी बस्तियों में
साथ मेरे क्या धरा था, मैं तो पूरा सच खड़ा था ॥(2) ॥

दुनिया साँची मैं ही झूठा, मुझसे ही मेरा मन था रूठा
अपनों से क्यों साथ छूठा, कर दिया क्या काम अनूठा
कह गया मेरा मन था टूटा, पर मेरा नहीं कोई बटुठा
पर मगर यूं ध्यान आया, साथ मैं मेरे क्या था लाया

अरे मैं तो था उन कश्तीयों में, झूठ से भरी बस्तियों में
साथ मेरे क्या धरा था, मैं तो पूरा सच खड़ा था

Saturday, December 20, 2014
Topic(s) of this poem: life
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
यह कविता हमे जिंदगी के उन पहलूयो से अवगत कराती है जिनसे हम सदैव पीछे हटते रहे है
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