अंधेरो में उजाला Poem by Samar Sudha

अंधेरो में उजाला

'अंधेरो रास्तो में कहीं खो गया हूँ
जगते जगते, कहीं सो गया हूँ'

'भटका है मन, यूँ क्यों मुझसे
दीये उजालो के, गए क्यों भुज से'

'रौशनी नहीं, बस छाईए काली घटा
रे ऐह सूरए, अपना शौर्य दिखा'

'छुड़ा कैद से, पंछी ख़्यालो के
ढूंढ़ जवाब, कुछ ऐसे सवालो के'

'शायद जवाबो से मिले, हल वो सारे
बहते हो दूर, जो दरिया किनारे'

'कश्ती भी ना पहुंचे जहा
समझ में ऐसा जरिया बना'

'के मिले वो किरण और हो ऐसा सवेरा
की सूरज के छुपने से ना हो अँधेरा'

समर सुधा

Tuesday, January 12, 2016
Topic(s) of this poem: darkness
COMMENTS OF THE POEM
Abhilasha Bhatt 12 January 2016

Beautiful poem...thanks for sharing :)

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