उफरि परय एइसन मंहगाई (भोजपुरी) Poem by Upendra Singh 'suman'

उफरि परय एइसन मंहगाई (भोजपुरी)

Rating: 5.0

छीनय मुँह क निवाला हरजाई.
उफरि परय एइसन मंहगाई.

लागल बज़रिया में आग़ मोरे भईया.
देखत-देखत उड़ी जाला रूपईया.
हड़पि जाले पिया क कमाई.
उफरि परय एइसन मंहगाई.

अबहीं त पड़ल हउवय सगरो महीनवां.
बीतल बा मुश्किल चारि- छह दिनवां.
झपटि लिहल सब पाई-पाई.
उफरि परय एइसन मंहगाई.

तार-तार भइलंय तन पर कपड़ा आ लत्ता.
खींचति बा बबुनी क देखा हो दुपट्टा.
करावति बा इ जग हंसाई.
उफरि परय एइसन मंहगाई.


हमारी गरीबी क खिल्ली इ उड़ावेले.
बीच बज़रिया में हमके हो चिढावेले.
कवन एकर गीतिया हम गाईं.
उफरि परय एइसन मंहगाई.


डेरवावे धमकावे बोले ले बोली.
मारेले छिनरी करेजवा प गोली.
हउवे इ बजर क कसाई.
उफरि परय एइसन मंहगाई.


कइलय सपनवां इ होली-दीवाली.
खींचेले बचवन के अगवां क थाली.
हउवे इ बज़र क कसाई.
उफरि परय एइसन मंहगाई.

Wednesday, January 20, 2016
Topic(s) of this poem: life
COMMENTS OF THE POEM
Abhilasha Bhatt 21 January 2016

An amazing sharing that leads one to think more than once....liked it....thank u for sharing :)

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Rajnish Manga 20 January 2016

निरंतर बढ़ती महंगाई की वजह से आम जनता का जीना मुश्किल हो गया है. बहुत सुंदर वर्णन. धन्यवाद, मित्र.

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Kumarmani Mahakul 20 January 2016

Very thought provoking poem shared on life. Interesting and wise definitely.10

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