छीनय मुँह क निवाला हरजाई.
उफरि परय एइसन मंहगाई.
लागल बज़रिया में आग़ मोरे भईया.
देखत-देखत उड़ी जाला रूपईया.
हड़पि जाले पिया क कमाई.
उफरि परय एइसन मंहगाई.
अबहीं त पड़ल हउवय सगरो महीनवां.
बीतल बा मुश्किल चारि- छह दिनवां.
झपटि लिहल सब पाई-पाई.
उफरि परय एइसन मंहगाई.
तार-तार भइलंय तन पर कपड़ा आ लत्ता.
खींचति बा बबुनी क देखा हो दुपट्टा.
करावति बा इ जग हंसाई.
उफरि परय एइसन मंहगाई.
हमारी गरीबी क खिल्ली इ उड़ावेले.
बीच बज़रिया में हमके हो चिढावेले.
कवन एकर गीतिया हम गाईं.
उफरि परय एइसन मंहगाई.
डेरवावे धमकावे बोले ले बोली.
मारेले छिनरी करेजवा प गोली.
हउवे इ बजर क कसाई.
उफरि परय एइसन मंहगाई.
कइलय सपनवां इ होली-दीवाली.
खींचेले बचवन के अगवां क थाली.
हउवे इ बज़र क कसाई.
उफरि परय एइसन मंहगाई.
निरंतर बढ़ती महंगाई की वजह से आम जनता का जीना मुश्किल हो गया है. बहुत सुंदर वर्णन. धन्यवाद, मित्र.
Very thought provoking poem shared on life. Interesting and wise definitely.10
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I would like to translate this poem
An amazing sharing that leads one to think more than once....liked it....thank u for sharing :)