'लंका की लाडी' Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

'लंका की लाडी'

Rating: 5.0

'लंका की लाडी'

तुम हो प्रेमी तुम हमारा
सपना रहता है अधूरा
अब तो सम्हालो हमारी धुरा
कैसे होगा जीवन पूरा?

आपही से ही है मेरा सौदर्य
इस से चमकता है आपका भी ऐश्वर्य
यही है बात गौरव मेह्सूस करने के लिए
आप ही तो मेरे लिए है, जीवन में रंग भरनेके लिए

हम ने चाहा था आहें भरना
पर आपने मान लिया कहना
यही से होता है सम्बन्ध "शमा ओर परवाने का"
सौगंध लेकर एक दुसरेके लिए हामी भरने का

हम कभी इक दूसरे से नही होंगे अलग
आलापें गे नहीं अलग से अपना राग
अब तो हम ही होंगे आपके चाँद की चांदनी
कहलायेंगे दिल की रानी ओर और सामराघ्नि

मने मे थी उधेहबून ओर अडचन
आपने अभी तक नहीं किया था चयन
हम नहीं ठीक से करपाते थे शयन
मन में ङर था आप कहीं ना हो जाओ पलायन

हम ने विनती की थी प्रभु से
इसलिये शुक्रगुजार किया सही मन से
मन चाहा वर मिला, साथ में बँगला और गाडी
अब तो हम भी कहलायेंगे 'लंका की लाडी'

'लंका की लाडी'
Monday, January 25, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 25 January 2016

a welcom Tsegaye Alemayehu likes this. Unlike · Reply · 1 · Just now

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 25 January 2016

हम ने विनती की थी प्रभु से इसलिये शुक्रगुजार किया सही मन से मन चाहा वर मिला, साथ में बँगला और गाडी अब तो हम भी कहलायेंगे लंका की लाडी

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
Close
Error Success