ख़िल्फ़तें उठाते रहे Poem by Ahatisham Alam

ख़िल्फ़तें उठाते रहे

Rating: 3.5

छीनकर खुशियाँ मेरी जिन्होंने मुझको दे दिये हैं ग़म
ख़िल्फ़तें उठाते रहे उन्ही के लिये सारी ज़िन्दगी भर हम

अश्क़ बहते रहें मेरे तो भी उनको परवाह नहीं
हम रहें या ना रहें उनको मेरी चाह नहीं
पायें हैं ग़म ज़्यादा जिनसे और खुशियाँ पायीं कम
ख़िल्फ़तें उठाते रहे उन्ही के लिये साडी ज़िन्दगी भर हम।

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Written in year 2000
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