आप कहाँ जाएंगे Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

आप कहाँ जाएंगे

आप कहाँ जाएंगे

पहले फिसलना
फिर यह कहना
ना माना दिल का कहना
ऊपर से यह पानी का बहना

खोया था होश पहले से
हार गयी थी में नेंहले पे देह्ले से
अंजाम इतना चुभावना होगा मालूम न था
पर लुभावना भी इतना मासूम होगा यह तो मालूम था

बस अब तो आ जाओ
सपने में ना सताओ
ज्यादा मत रुलाओ
और मन को आस दिलाओ।

'प्यार करना बुरा है ' यदि
तो जीना भी मुश्किल है माझी
हम तो समल भी जाएंगे
पर आप कहाँ जाएंगे?

आप कहाँ जाएंगे
Friday, April 8, 2016
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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