कुछ सपने सजा लें‏ Poem by Pushpa P Parjiea

कुछ सपने सजा लें‏

Rating: 5.0

चलो न मितरा कुछ सपने सजा लें,
हम तुम एक नया जहां बना लें।
आ जाओ न मितवा कभी डगर हमारी,
तुमसे बतियाकर अपना मन बहला लें।

भर ले सांसो में महक खुशियों की,
कुछ नाचे कुछ गाएं कुछ झूमें और खुशियां मना लें।
मन की उमंगें संजोएं और एक अलख जगा लें।।



मिटा धरती से दुख-दर्द की पीड़ा,
हर किसी के दामन को खुशियों से सजा लें।
चलो न मितरा सोए को जगा लें,
चलो न मितरा भूखों को खिला दें ।।

खा लें कसम कुछ ऐसी कि,
हर आंख से दुख के आंसू मिटा दें।
कर लें मन अपना सागर-सा
जग की खाराश (क्षार) को खुद में समा लें।।

बुलंदियां हों हिमालय के जैसी हमारी,
पर मानव के मन से रेगिस्तान को हटा दें।
खुशियों के बीज बोकर इस,
नए वर्ष को और नया बना दें ।
)

Friday, April 15, 2016
Topic(s) of this poem: alone
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 15 April 2016

प्रकटतः नववर्ष की पृष्ठभूमि में लिखी गयी इस कविता में दुःख दर्द से मुक्त एक सुंदर संसार का निर्माण करने का आग्रह दिखाई देता है. कविता की अंतिम पंक्तियाँ जैसे इसी आशय को रेखांकित कर रही है: खुशियों के बीज बोकर इस, नए वर्ष को और नया बना दें ।

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Pushpa P Parjiea 10 June 2016

BAHUT BAHUT DHANYWAD APKO IS KAVITA KO PASAND KARNE KE LIYE OR APNE ANMOL VICHAAR PRKAT KARNE KE LIYE..

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