कहीं तू सजता शादी के मंडप में
कहीं तू रचता दुलहन की मेहंदी में
कहीं सजता तू द्दुल्हे के सेहरे में
कहीं बन जाता तू शुभकामनाओं का प्रतिक
तो कहीं तुझे देख खिल उठती तक़दीर
कहीं कोई इजहारे मुहब्बत करता जरिये से तेरे
तो कहीं कोई खुश हो जाता मजारे चादर बनाकर
कहीं तेरे रंग से रंग भर जाता महफ़िलों में
तो कहीं तू सुखकर बीती यादें वापस ले आता
जब पड़ा होता बरसो किताबों के पन्नो में
सूखने के बाद भी हर दास्ताँ ताज़ा कर जाता
. तुझे देख याद आजाता किसी को अपना प्यारा सा बचपन
तो कहीं तेरी कलियाँ दिखला देतीं खुशबुओं के मंजर
कभी तो तू भी रोता तो होगा क्यूंकि,
जब भगवन पर तू चढ़ाया जाने वाला,
कभी मुर्दे पर माला बनकर सजता होगा
शायद फूलों को बनाकर ईशवर ने इंसा को,
दिया सन्देश ये जीवन में हर पल न देना,
साथ सिर्फ खुशियों का तुम
लगा लेना ग़म को भी कभी सीने से और,
किसी दुखियों के काम आ जाना
जैसे फुल कहीं भी जाये
वो बस हर पल मुस्कुराये हर पल मुस्कुराये
यहाँ तक की जब बिछड़े वो अपने पेढ से फिर भी वो ओरो की शोभा बढ़ाये
सदा मुस्कुराये इंसा के मन को भाये.
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फूलों के माध्यम से जीवन जीने का एक रास्ता दिखाती है यह कविता. बहुत सुंदर. कविता शेयर करने के लिये धन्यवाद, पुष्पा जी. आपकी कविता से एक उदाहरण: न देना...साथ सिर्फ खुशियों का तुम...लगा लेना ग़म को भी कभी सीने से
Thankyouuu bhai