सपन संजोये सुख के तेरे
बिदाई की बेला आई है
एक नन्ही सी कली फिर से
दो आँगन में छाई है
महके गजरा खनके कंगना
सुर्ख जोड़े से सजाई है
लाडो रानी तेरी बिदाई की
प्यारी सी बेला आई है
रख न सकूँ निज घर में तुझको,
क्यूंकि इश्वर ने ये माया रचाई है
जाना पड़े ससुराल हर बेटी को
, पापा ने जीवन की रीत निभाई है
सुना पड जाये बाबुल का घर
और मन, पर बेटी.
,
यही किस्मत की दुहाई है,
मांगू रब से तेरी खुशियाँ सह के तेरे जाने का गम
बाद बिदाइ के जब मै देखू अपना घर आनगन
सुनि padi शहनाइ है, बिलख रहा मानो घर का कोना कोना
तेरी हर चीज़ देख अनखियन जलधार बह आइ है
असहय लगे तेरी बिदाई तदपे मन ओर मुझसे पुछे
आखिर तुने काहे को ये रीत निभाइ है? ? ? ? ?
भाये न मन को तो भी केइसे ये बिदाई कि बेला आइ है
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