बिदाई Poem by Pushpa P Parjiea

बिदाई

सपन संजोये सुख के तेरे

बिदाई की बेला आई है

एक नन्ही सी कली फिर से

दो आँगन में छाई है

महके गजरा खनके कंगना

सुर्ख जोड़े से सजाई है

लाडो रानी तेरी बिदाई की

प्यारी सी बेला आई है

रख न सकूँ निज घर में तुझको,

क्यूंकि इश्वर ने ये माया रचाई है

जाना पड़े ससुराल हर बेटी को

, पापा ने जीवन की रीत निभाई है

सुना पड जाये बाबुल का घर

और मन, पर बेटी.
,
यही किस्मत की दुहाई है,

मांगू रब से तेरी खुशियाँ सह के तेरे जाने का गम

बाद बिदाइ के जब मै देखू अपना घर आनगन

सुनि padi शहनाइ है, बिलख रहा मानो घर का कोना कोना

तेरी हर चीज़ देख अनखियन जलधार बह आइ है

असहय लगे तेरी बिदाई तदपे मन ओर मुझसे पुछे

आखिर तुने काहे को ये रीत निभाइ है? ? ? ? ?

भाये न मन को तो भी केइसे ये बिदाई कि बेला आइ है

Saturday, August 6, 2016
Topic(s) of this poem: girl
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