महिला दिवस है शक्ति दिवस भी Poem by Tarun Upadhyay

महिला दिवस है शक्ति दिवस भी

आसमान सा है जिसका विस्तार
चॉद-सितारों का जो सजाए संसार
धरती जैसी है सहनशीलता जिसमें
है नारी हर जीवन का आधार

कभी फूल सा रंग-सुगंध लगे
कभी चींटी सा बोझ उठाए अपार
कभी स्नेह का लगे दरिया निर्झर
कभी बने किसी का परम आधार

चूल्हा-चौका रिश्तों-नातों की वेणी
हर घर की यह गरिमामय श्रृंगार
आज कहाँ से कहाँ पहुँच गई है
हर नैया की बन सशक्त पतवार

घर से दफ़्तर चूल्हे से चंदा तक
पुरुष संग अब दौड़े यह नार
महिला दिवस है शक्ति दिवस भी
पुरुष नज़रिया में हो और सुधार....

- - अज्ञात

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