नारी जीवन Poem by Tarun Upadhyay

नारी जीवन

मैंने हँसाना सीखा है
मैं नहीं जानती रोना।
बरसा करता पल-पल पर
मेरे जीवन में सोना॥

मैं अब तक जान न पाई
कैसी होती है पीड़ा।
हँस-हँस जीवन में मेरे
कैसे करती है क्रीडा॥

जग है असार, सुनती हूँ
मुझको सुख-सार दिखाता।
मेरी आँखों के आगे
सुख का सागर लहराता।

उत्साह-उमंग निरंतर
रहते मेरे जीवन में।
उल्लास विजय का हँसता
मेरे मतवाले मन में।

आशा आलोकित करती
मेरे जीवन को प्रतिक्षण।
हैं स्वर्ण-सूत्र से वलयित
मेरी असफलता के घन।

सुख भरे सुनहले बादल
रहते हैं मुझको घेरे।
विश्वास प्रेम साहस हैं
जीवन के साथी मेरे।

- - अज्ञात

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