ख़ुदा को देखा? Poem by C. P. Sharma

ख़ुदा को देखा?

उसने कहा,
क्या मैंने ख़ुदा को देखा?
मैंने पाहिले ख़ुद को देखा
फिर उसको देखा।

ये सब देख
फिर मैंने उस से पूछा,
क्या तूने कभी अपने आप को देखा?
अपने बाप के बाप के बाप को देखा?

ये देखना और दिखाना भी क्या है?
जो था वो अब नहीं है,
हमने भी चले जाना,
क्या सच्च है ये
देखना और
दिखाना।

अब जो नहीं हैं
उन्हें सच्च मानते हो
सदा सच्च को नहीं पहचान ते हो

ये क्या तेरा पैमाना
देखना और दिखाना?
क्या गुलों में खुशबू को देखा है?
क्या प्रेम की रूह को तैने देखा है?
जिसे शमशान ले जाते क्या वो शव सच्च है?
या प्राण जो जीवन था, वो सच्च है?

किसने तेरे लिए
धरती, आकाश, सूरज और चाँद बनाये
किसने किया प्राणों का संचार
सब के भोजन, घर और
गृहस्थ का सब प्रबन्ध
कितने हैं कृतघ्न।

जिसने ख़ुद को न देखा
वो कैसे देखे ये सब
उसे ख़ुदा कैसे दीखे
पहिना हुआ है उसने
उल्टा चश्मा! ! ! ! !

ख़ुदा के लिए
पहिले ख़ुद को देखो
फिर ख़ुद में ही ख़ुदा को पाओ
सारे प्रपंचों को छोड़ के फिर
क्यों न ख़ुदा में ही समा जाओ? ? ? ? ? ? ? ? ? ?

ख़ुदा को देखा?
Monday, February 27, 2017
Topic(s) of this poem: god
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C. P. Sharma

C. P. Sharma

Bissau, Rajasthan
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