हम.ढूँढ रहे कब.से Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हम.ढूँढ रहे कब.से

हम.ढूँढ रहे कब.से.तुमको
.. पता.नहीं.क्यों.कहाँ.छिप जाते.हो।
तुम्हारे.बिना.जीना.अब हो.रहा.मुश्किल,
..और.तुम.मुझसे सदा. नजरें.छिपाते.हो।
मौका.मिल.जाये. यदि. कुछ.भी.कहने.का, ,
....।।। अपने.को.तब.तो.रोक.नहीं पाते.हो।
लुका-छिपी.का खेल.अब छोड़.दो, मेरे.यार!
.....दुनिया.सामने'नवीन'क्यों.न.मिल जाते.हो?

Tuesday, March 14, 2017
Topic(s) of this poem: love
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