हे भगवान भास्कर, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हे भगवान भास्कर,

हे भगवान भास्कर, पथ -दर्शक, सौभाग्यआपके कृपा-उपहार,
मन बुद्धि चित्त स्थिर रखते हे देव! करते दीन जन उद्धार।
हों हमारे तन-मन पुष्ट, परिजन परिकर सब बनें समृद्ध,
'नवीन' सब मँगल कर्म रहें रत, आपकी कृपा में रहें सदा आबद्ध।।

Monday, December 18, 2017
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success