दोस्त अब थकने लगे हे Poem by Sanjay Singh Saharan

दोस्त अब थकने लगे हे

Rating: 5.0

दोस्त अब थकने लगे हे
साथ साथ जो खेले थे बचपन में
वो सब दोस्त अब थकने लगे है
किसी का पेट निकल आया है
तो किसी के बाल पकने लगे है
सब पर भारी ज़िम्मेदारीया है
सबको छोटी मोटी कोई बीमारी है
दिन भर जो भागते दौड़ते थे
वो अब चलते चलते भी रुकने लगे है
उफ़ क्या क़यामत हैं
सब दोस्त थकने लगे है
किसी को लोन की फ़िक्र है
कहीं हेल्थ टेस्ट का ज़िक्र है
फुर्सत की सब को कमी है
आँखों में अजीब सी नमीं है
कल जो प्यार के ख़त लिखते थे
आज बीमे के फार्म भरने में लगे है
उफ़ क्या क़यामत हैं
सब दोस्त थकने लगे है
देख कर पुरानी तस्वीरें
आज जी भर आता है
क्या अजीब से है ये वक़्त भी
किस तरह ये गुज़र जाता है
कल का जवान दोस्त मेरा
आज अधेड़ नज़र आता है
कल के ख़्वाब सजाते थे जो कभी
आज गुज़रे दिनों में खोने लगे है
उफ़ क्या क़यामत हैं
सब दोस्त थकने लगे है ।✌

This is a translation of the poem Friends Are Tired Now by Sanjay Singh Saharan
Friday, March 17, 2017
Topic(s) of this poem: nowruz
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
दोस्तों के बारे में कहानी..
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 17 March 2017

किशोरावस्था और युवावस्था की हँसती खेलती मैत्री का उम्र बढ़ने के साथ जो हाल हो जाता है, उसका आपने सुंदर वर्णन किया है. धन्यवाद, मित्र.

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Dear Mr Sanjay your poem is beautiful and make me nostalgic i want to record this poem for our college alumni meet with your kind permission. my mail id is raghav.dusane@gmail.com thanks

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Deepak Patel 08 March 2024

Excellent

0 0 Reply
Swaranjeet Singh 26 June 2021

दोस्ती थकती नहीं है थकन दूर करती है फ़ोन पे भी तेरी आवाज़ मेरी थकन हरती है बीमे के फ़ॉर्म से जो छोटे बड़े काम से जो दोस्ती बिखर जाए तो समझो वो थी ही नहीं दोस्त तो थक सकते हैं - दोस्ती नहीं थकती Swaranjeet Singh 25th June 2021

2 0 Reply
Swaranjeet Singh 26 June 2021

फ़ुरसत की कमी कैसी आँख में नमी कैसी दोस्ती ख़तों में नहीं यादों में होती है प्यार ख़त कहाँ माँगे चलती ही ना हों टाँगें ये तो बस बहाना है वो पड़ा है फ़ोन उठा दूर कहाँ जाना है

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Swaranjeet Singh 26 June 2021

बालों के पकने से पैरों के थकने से बोझ-ए-ज़िम्मेदारी से छोटी बड़ी बीमारी से जिस्म तो थक सकते हैं - दोस्ती नहीं थकती सेहत की क़िल्लत से पैसे की ज़िल्लत से पेट के निकलने से दिन भर के चलने से जिस्म तो थक सकते हैं - दोस्ती नहीं थकती

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Sanjay Singh Saharan 11 September 2019

As your humble request to share this poem to college alumni.. Yes- you can.

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Sanjay Singh Saharan

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